प्रश्न:गुरु जी मैं अगर आपको अपना
गुरु बनाना चाहूं तो क्या करना होगा मुझे?क्योंकि मुझे साधना करने की बहुत इच्छा है और मुझे कुछ भी नही पता है,कृपया मार्गदर्शन करें | उत्तर: प्रिय जितेंद्र, गुरु शिष्य का सम्बंध जन्मों की आध्यात्मिक यात्राओं के फलस्वरूप घटित होता है गुरु का मिलना जीवन में साधारण घटना नही अपितु जैसे जन्मों गहरी #पाताल में दबी सोई अज्ञात मृत शरीर में जैसे स्वर्ग से किसी ने #अमृत के छींटे मार दिए हो ,साधक जन्मों की यात्रा करता है कभी उठता है कभी गिरता है कभी गुरु से #प्रेम कभी गुरु द्रोह पा गुरु दोष ग्रहण कर पाप कमा के नीचे की गति करता है जिसे उचित समय पे फिर किसी जन्म गुरु अपनी करुणामयी दृष्टिपात कर उसे जगाता है क्षणिक बदलाव के आकर्षण को लालायित मन कुछ समय के लिए तो उसके बताए मार्ग का अनुसरण करता है किन्तु बीच में पुनः अपने पाप संस्कारों के कारण अपनी #कुबुद्धि व अविवेक जिसे वो अपनी बिद्धिमत्ता और विवेक समझता है के पायदान पे खड़े हो गुरु वाणी को भी कुबुद्धि से तौल के चलने पर मजबूर हो जाता है ।मार्ग इसका ठीक विपरीत है प्रिय शिष्य को अपनी बुद्धि,विवेक,पूर्व निर्धारित मान्यता,जानकारी,किताबी व इंटरनेट तथाकथित ज्ञान के आधार पे गुरु को नापने की आदत का त्याग करना पड़ता है तभी वो गुरु को अंतसचेतना से स्वीकार कर पाता है।गुरु तो उसे पूर्व जन्मों से खींचता हुआ ला रहा है जिस कारण उसे अनंत प्रेम करता है चाहता है कि इस बार तो वो जागे समझे देखे । जो साधक गुरु चरणों में सम्पूर्ण समर्पित हो #भीख मांगता हुआ आता है और उसकी आत्मा से एक विलाप होता हुआ आत्मा के दर्पण आंखों से बाहर बह के मौन में गुरु चरणों को स्पर्श करता है ,उस स्पर्श को गुरु अपने शिष्य के वापसी पर दीक्षा दे के पुनः उसी यात्रा पर अग्रसर करता है ,यदि कोई साधक इस भाव से अपने मैं को भूल गुरु समक्ष प्रार्थना करे तो गुरु अवश्य उसे #मुक्ति मार्ग पर अग्रसर करता है । आपको #दीक्षा दी जाएगी प्रिय क्योंकि जिसे ज्ञात ही नही है उसे अवश्य ज्ञात है और जो जानता है वो बहुत आखिरी पंक्ति में खड़ा पाया जाता है उस लोक के प्रवेश द्वार पे। आप मुझे 9919935555 पर whatsapp कर call का समय लेके वार्ता कर सकते हैं। आपका अपनी क्षमतानुसार मार्गनिर्देशन करना एक गुरु होने के नाते, मेरा प्रथम कर्तव्य है ।