MBA के पश्चात मेरे अपने कई वर्षों के प्राइवेट कंपनियों में मैनेजमेंट में कार्य करने के अनुभव के आधार पर मैने देखा किस तरह से भिन्न भिन्न कंपनियों के अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों का अनैतिक शोषण करते हैं और उनकी निजी कमजोरियों का फायदा अपने स्वयं के अहंकार को पोषित करने के लिए उठाते हैं। कुुुछ सुलझे हुए भी होते हैं। इसमें मैने दो पहलूओं को केंद्र में रखा ।प्रथम जिसका शोषण हो रहा ,उसमें तेज की कमी होना अर्थात ओज न् होना, बल का न होना जिस वजह से सामने से नकारात्मक ऊर्जाएं हावी हो जाती हैं और यह व्यक्ति पीड़ित हो जाता है।द्वितीय यह पाया कि सामने जो उच्च पद पर आसीन है उसके पद पे होने के अहंकार को यदि सामने अधीनस्थ कर्मचारी से हवा न मिले तो उस स्थिति में अहंकार का पोषित ना होना उस पद की गर्मी को कम अनुभव कराता है ,जो उसकी अपनी एक रुग्ण मानसिक अवस्था का परिचय है,जिसे आध्यात्मिक कमजोरी के कारण स्वीकार्य नही कर पाता है।
अब प्रश्न है, ऐसे दुष्ट अधिकारी से कैसे निपटें ।निपटने के कई कोण हैं कहीं से भी प्रवेश किया जा सकता है किंतु यहां तंत्र के माध्यम से दुष्ट अधिकारी को कैसे सुधार के, सही पंक्ति में लाया जाए उसके कुछ अपने अनुभवों में से एक साझा करूँगा।
एक कंपनी में अधिकारी अत्यधिक कामलोलुप,अहंकारी अधीनस्थ को दबाने वाला था ईश्वरीय कृपा से मेरा स्थानांतरण उस विभाग में हो गया ,क्योंकि शुरू से काल भैरव नाथ की कृपा पात्र रहा तो उग्रता हमेशा से झलकती रही ,वहां जब मैंने हाल देखा सहकर्मियों का ,उनकी अधिकारी से मिलने वाली पीड़ा का तो नीति, नियम, नैतिकता, छल, कपट की सीमा उल्लंघन पर इस दुष्ट अधिकारी को सही से राह पर लाने का श्री काल भैरव से आशीर्वाद ले एक सबसे ऊर्जा विहीन व्यक्ति से ,जो कि अत्यधिक पीड़ित था अधिकारी से उस से कुछ तंत्र के प्रयोग करवाये । ये जो बड़े बड़े आजके तांत्रिक,ओझा,बाबा टाइप आ के अहं से कहते हैं की मैं यह काम कर दूंगा वो कर दूंगा स्पष्ट कर दु ,यह क्रिया इस ऊर्जा विहीन व्यक्ति से कराने का अर्थ ही यह था कि न् आप करते न् कोई और कुछ करता करने वाला कोई और ही है,तो इस घमंड में न रहना श्रेष्ठतम होगा की वो कुछ कर रहे। जब उनसे मैने यह क्रिया उस boss के विरोध में कराई तो सर्वप्रथम तो उसकी(अधिकारी) ऊर्जा ह्रास होना शुरू हो गया,फिर जब उसकी ऊर्जा क्षीण हुई तब कुछ एक आध प्रयोगों से और कुछ गुप्त विधानों के भयावह अनुभवों से उसकी आत्मा तक हिल गई जिस से उसको सारी कहानी समझ आ गई ,जब मैंने उसकी आँखों में आंखे डाल के तंत्र को परिभाषित किया उन सभी अधीनस्थ कर्मचारियों के समक्ष। इस घटना के पश्चात उनमे बहुत परिवर्तन आया। अर्थ यह है तंत्र का मलहम उचित स्थान में लगाने से रोग निवारण अत्यंत आसान हो सकता है यदि नीति,नियम,सत्यता पर साधक चल रहा है तो ।
ऐसे मेरे पास कई boss पीड़ित आते हैं परामर्श हेतु तो प्रथम तो सुझाव यह रहता है कि भय न् करें किसी से भी और यदि बात नही बनती है तो बॉस के साथ बैठ कर मामलों को सुलझाने की सलाह देता हूँ। अंतिम जब कुछ नही होता तो बॉस की खाट खड़ी करनी पड़ती है और कईयों को लाइन पे लाया गया है। कुछ ज्यादा मूर्ख , अनैतिक और उजड्ड होते है जो पद की गरिमा के विरुद्ध हो रहे होते हैं फिर उनका मैं व्यक्तिगत रूप से संज्ञान ले के कर्म करता हूँ।बाकी हमारा बाबा जाने।