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मेरे प्रिय आचार्य जी से संबंधित मेरे भाव

U G मेरी वास्तविक मुस्कान के कारण FUCK THIS SHIT

मेरे प्रिय आचार्य जी से संबंधित मेरे भाव

गुरु की सीमा से अनंत प्रकाश वर्ष दूर जाने का कार्य यदि किसी दिव्य ज्योति से हुआ है तो वो हैं मुझे अति प्रिय आचार्य रजनीश जी (ओशो )। प्रथम स्व की यात्रा संपूर्ण करना फिर करोड़ों बुझे दीयों को आंदोलित करना और प्रत्येक रंग व ढंग से मरी हुई बुझी हुई वीरान धराओं पर ईश्वरीय पुष्प खिलाना वो भी अंतराष्ट्रीय स्तर पे ,ये युगों में कोई कर पाया तो आच

गुरु की सीमा से अनंत प्रकाश वर्ष दूर जाने का कार्य यदि किसी दिव्य ज्योति से हुआ है तो वो हैं मुझे अति प्रिय आचार्य रजनीश जी (ओशो )। प्रथम स्व की यात्रा संपूर्ण करना फिर करोड़ों बुझे दीयों को आंदोलित करना और प्रत्येक रंग व ढंग से मरी हुई बुझी हुई वीरान धराओं पर ईश्वरीय पुष्प खिलाना वो भी अंतराष्ट्रीय स्तर पे ,ये युगों में कोई कर पाया तो आचार्य जी ही कर पाए ।ऐसी करुणा से जब कोई गुरु पृथ्वी पर विचरण करता है तब सुप्त आत्माएं खींची हुई आती हैं और प्रत्येक सुप्त खिलाड़ी (आत्मा) सभी हथकंडे अपनाती है, इस महान गुरु के करुणा को अपने जोर से गिराने मारने कुचलने के ।आचार्य जी को खूब बदनाम किया गया ,खतरनाक रेडियेशन से गुजारा गया उस नाजुक को,कही रुकने भी नही दिया गया। फिर भी सत्य फैलता गया उनके माध्यम से।उन्होंने कहीं कसर नही छोड़ी साधकों को सही मार्ग दिखाने में,साधक जहा जहा फंसा है वहा वहा चोट मारते रहे,साधक पैसे पर अटका तो पैसे के झरोखे से दिखाया,सेक्स पर अटका तो सेक्स के बिंदु से दिखाया,मूर्ति जादू टोना चमत्कार पर अटका तो उस बिंदु से दिखाया , मनोवैज्ञानिकों के दंभ को तोड़ा कहा तक नहीं गया।किंतु अहंकार में डूबा साधक कहा देख पाएगा निश्चल निर्मल गुरु वो देखेगा पैसा,गाड़ी रोल्स रॉयस,स्त्रियां इत्यादि और उस पर निर्णय लेगा गुरु की प्रधानता का ।
ओशो को इतना लिखना,,बोलना, सुनना ,जीना ,करना सब व्यर्थ गया यदि ओशो को चाहने वाला ओशो को ही नही छोड़ पाया ।


श्री तारामणि जी
श्री काल भैरव आश्रम

मेरी आंख रमन

U G मेरी वास्तविक मुस्कान के कारण FUCK THIS SHIT

मेरे प्रिय आचार्य जी से संबंधित मेरे भाव

मेरी साधना काल के समय की श्री रमन से आत्मीयता कैसे हुई मुझे स्वयं से भान नही है।एक दिवस उनकी पुस्तक जो किसी अंग्रेज ने लिखी थी किसी अंग्रेज साथी के हाथ में देख ऋषिकेश नदी किनारे श्री रमन के आंखो में जैसे झांका और उन्होंने मुझ में झांक लिया और एक अंधकार छा गया चहुं ओर मात्र दो आंखें बची रह गईं एक वो और एक ये , तभी से श्री रमन  मेरी आंख हो 

मेरी साधना काल के समय की श्री रमन से आत्मीयता कैसे हुई मुझे स्वयं से भान नही है।एक दिवस उनकी पुस्तक जो किसी अंग्रेज ने लिखी थी किसी अंग्रेज साथी के हाथ में देख ऋषिकेश नदी किनारे श्री रमन के आंखो में जैसे झांका और उन्होंने मुझ में झांक लिया और एक अंधकार छा गया चहुं ओर मात्र दो आंखें बची रह गईं एक वो और एक ये , तभी से श्री रमन  मेरी आंख हो गए।उनको कोई भी देखने वाला आंखो में देख बता देगा की ये केवल शरीर है यहां।

U G मेरी वास्तविक मुस्कान के कारण FUCK THIS SHIT

U G मेरी वास्तविक मुस्कान के कारण FUCK THIS SHIT

U G मेरी वास्तविक मुस्कान के कारण FUCK THIS SHIT

उनको याद करता हुआ स्वयं की वर्तमान स्थिति का भान होता है और अक्सर मुस्कुराता हूं और समझता हूं उनकी स्थिति को।कैसे उन्होंने सब बताया और कैसे उन्होंने नकार दिया। कोई भी उपलब्ध करुणा से बहता हुआ सोए हुओं को जगाने में सदैव से असफल रहा है क्युकी वो तो चला गया अब वापसी का धंधा है नही की गए और वापस आ जाएं कोई स्वप्न नही है ये ये तो सत्यता है वाप

उनको याद करता हुआ स्वयं की वर्तमान स्थिति का भान होता है और अक्सर मुस्कुराता हूं और समझता हूं उनकी स्थिति को।कैसे उन्होंने सब बताया और कैसे उन्होंने नकार दिया। कोई भी उपलब्ध करुणा से बहता हुआ सोए हुओं को जगाने में सदैव से असफल रहा है क्युकी वो तो चला गया अब वापसी का धंधा है नही की गए और वापस आ जाएं कोई स्वप्न नही है ये ये तो सत्यता है वापसी की संभावना है नही। तो फिर भगाया उन्होंने भागो यहां से fuck this shit ,you are fucking bastard जैसे शब्दों से उनकी असमर्थता दिखती है की इन मूर्खो को किसी भी प्रकार से नही समझाया जा सकता तो भगाओ सब समय व्यर्थ करते हैं। उसकी आंखों में झांको तो पाओगे गहराई जैसे किसी भी जा चुके के आंखों की गहराई शांति भरी होती है ठीक वैसे ही उनके अपने समानांतर उलझनों से मिलते आनंद में आनंदित होता मुस्कुराता रहता हूं । बस हस्ते हुए उनसे कहता हूं की i enjoy being played by shit 😊



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