Through Fire and Faith: From Bhairava's Devotee to Luminious Sage
Born into a family steeped in Bhairava and Kali worship in Uttarakhand, Gurudev’s journey began as a shy, often misunderstood youth. Despite ridicule and hardship, an innate fire of spiritual seeking burned within him.
His quest led him through diverse spiritual disciplines—aghor, kapalik, sulemani, and Buddhist practices—each mastered with a combination of inherent genius and ancestral blessings. The path was fraught with challenges: career sacrifices, homelessness, extreme poverty, and deception by false gurus. Yet, Gurudev’s unwavering faith in Lord Bhairava remained his guiding light.
Throughout this arduous journey, Gurudev had the fortune of learning from genuine tantric masters, honing his skills in the esoteric arts. His commitment to daily meditation and his ability to perceive life as divine play (leela) were constants in his transformative saga.
This rigorous spiritual odyssey culminated in Gurudev’s own realization, marking his transition from a devoted disciple to a luminous sage. Today, Sadgurudev Shri Taramani Ji stands as a beacon of tantric wisdom and meditation, his life a testament to the transformative power of devotion and perseverance.
Expertise
- Meditation (ध्यान)
- Tantra (तंत्र)
- Bhairava & Mahavidya Diksha (भैरव और महाविद्या दीक्षा)
- Astrology (ज्योतिष)
- Paranormal Activities (अलौकिक गतिविधि)
- Ghosts / Spirits Obstacle (भूत प्रेत बाधा)
- Departed Soul Communication (मृत आत्मा सम्पर्क)
Core Philosophy
“सम्पूर्ण समर्पण एक मात्रा कुंजी है”. Surrendering to the Guru is the cornerstone of spiritual growth, a pathway to transcending the self and realizing higher truths. It involves relinquishing the ego’s grip and embracing trust in divine guidance, leading to profound inner transformation and peace. Sadgurudev emphasizes this surrender as the key to unlocking spiritual fulfillment, guiding disciples to relinquish control and find solace in the Guru’s wisdom.
“कष्ट मे आनंद है”. Witnessing and understanding pain through this surrendered lens brings profound insights. It shifts our perspective on suffering, revealing it as a catalyst for spiritual evolution rather than a mere trial. Through this journey, one discovers that joy isn’t external but inherent, found in the depths of our resilience and connection to the divine. Sadgurudev teaches that by embracing challenges with grace and trust, we uncover profound truths about ourselves and our purpose, leading to ultimate realization and lasting peace.
This integrated approach to spirituality encourages disciples to navigate life’s complexities with faith, humility, and a steadfast commitment to inner growth under the guidance of the Guru.
गुरुदेव की दृष्टि मे
मेरी आंख रमण
मेरी साधना काल के समय की श्री रमण से आत्मीयता कैसे हुई मुझे स्वयं से भान नही है।एक दिवस उनकी पुस्तक जो किसी अंग्रेज ने लिखी थी किसी अंग्रेज साथी के हाथ में देख ऋषिकेश नदी किनारे श्री रमण के आंखो में जैसे झांका और उन्होंने मुझ में झांक लिया और एक अंधकार छा गया चहुं ओर मात्र दो आंखें बची रह गईं एक वो और एक ये , तभी से श्री रमण मेरी आंख हो गए। उनको कोई भी देखने वाला आंखो में देख बता देगा की ये केवल शरीर है यहां।
मेरे प्रिय आचार्य जी से संबंधित मेरे भाव Osho
गुरु की सीमा से अनंत प्रकाश वर्ष दूर जाने का कार्य यदि किसी दिव्य ज्योति से हुआ है तो वो हैं मुझे अति प्रिय आचार्य रजनीश जी । प्रथम स्व की यात्रा संपूर्ण करना फिर करोड़ों बुझे दीयों को आंदोलित करना और प्रत्येक रंग व ढंग से मरी हुई बुझी हुई वीरान धराओं पर ईश्वरीय पुष्प खिलाना वो भी अंतराष्ट्रीय स्तर पे ,ये युगों में कोई कर पाया तो आचार्य जी ही कर पाए ।ऐसी करुणा से जब कोई गुरु पृथ्वी पर विचरण करता है तब सुप्त आत्माएं खींची हुई आती हैं और प्रत्येक सुप्त खिलाड़ी (आत्मा) सभी हथकंडे अपनाती है, इस महान गुरु के करुणा को अपने जोर से गिराने मारने कुचलने के ।आचार्य जी को खूब बदनाम किया गया ,खतरनाक रेडियेशन से गुजारा गया उस नाजुक को, कही रुकने भी नही दिया गया। फिर भी सत्य फैलता गया उनके माध्यम से। उन्होंने कहीं कसर नही छोड़ी साधकों को सही मार्ग दिखाने में, साधक जहा जहा फंसा है वहा वहा चोट मारते रहे, साधक पैसे पर अटका तो पैसे के झरोखे से दिखाया, सेक्स पर अटका तो सेक्स के बिंदु से दिखाया, मूर्ति जादू टोना चमत्कार पर अटका तो उस बिंदु से दिखाया, मनोवैज्ञानिकों के दंभ को तोड़ा कहा तक नहीं गया। किंतु अहंकार में डूबा साधक कहा देख पाएगा निश्चल निर्मल गुरु वो देखेगा पैसा, गाड़ी रोल्स रॉयस, स्त्रियां इत्यादि और उस पर निर्णय लेगा गुरु की प्रधानता का । ओशो को इतना लिखना, बोलना, सुनना, जीना, करना सब व्यर्थ गया यदि ओशो को चाहने वाला ओशो को ही नही छोड़ पाया ।
UG मेरी वास्तविक मुस्कान के कारण FUCK THIS SHIT
उनको याद करता हुआ स्वयं की वर्तमान स्थिति का भान होता है और अक्सर मुस्कुराता हूं और समझता हूं उनकी स्थिति को।कैसे उन्होंने सब बताया और कैसे उन्होंने नकार दिया। कोई भी उपलब्ध करुणा से बहता हुआ सोए हुओं को जगाने में सदैव से असफल रहा है क्युकी वो तो चला गया अब वापसी का धंधा है नही की गए और वापस आ जाएं कोई स्वप्न नही है ये ये तो सत्यता है वापसी की संभावना है नही। तो फिर भगाया उन्होंने भागो यहां से Fuck this shit, You are fucking bastard जैसे शब्दों से उनकी असमर्थता दिखती है की इन मूर्खो को किसी भी प्रकार से नही समझाया जा सकता तो भगाओ सब समय व्यर्थ करते हैं। उसकी आंखों में झांको तो पाओगे गहराई जैसे किसी भी जा चुके के आंखों की गहराई शांति भरी होती है ठीक वैसे ही उनके अपने समानांतर उलझनों से मिलते आनंद में आनंदित होता मुस्कुराता रहता हूं । बस हस्ते हुए उनसे कहता हूं की I enjoy being played by shit 😊